कथा-संग्रह 'अनकही' के कथानक वस्तुतः हमारे आसपास बिखरी जिंदगी में अनिर्णय की स्थिति से गुजरते व्यक्तियों के जीवन की घटनाएँ हैं। परिवार-समाज, बाजार, कार्यस्थली-कहीं भी वह आम व्यक्ति विषम परिस्थितियों से गुजरता है तो उनके प्रतिकार की राह उसे नहीं सूझती और न ही वह खुले गले से जोर देकर यह कह ही पाता है कि कुछ गलत हो रहा है। प्रभुता का अधिकार-भाव जिन्हें हासिल है, वे या तो उसकी अनदेखी करते हैं अथवा छल-बल-कल से उसकी अभिव्यक्ति को नियंत्रित कर लेते हैं।
फिर जो अव्यक्त-अनकहा रह जाता है, उसी को स्वर देने की चेष्टा का प्रतिफल ये कहानियाँ हैं, जो यह भी रेखांकित करती हैं कि किसी उलझन की लंबे समय तक अनदेखी करने से उसका सिरा खो जाता है। कोई आवाज समय पर न उठे तो समय चूककर उसका असर भी खो जाता है। उसी खोए हुए स्वर की कथा है 'अनकही'।
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Specifications
Dimensions
Width
7 mm
Height
216 mm
Length
140 mm
Depth
0.6
Weight
154 gr
In The Box
1 Book
Book Details
Title
Ankahi
Imprint
Prabhat Prakashan
Publication Year
2024 December
Number of Pages
128
Product Form
Paperback
Publisher
Prabhat Prakashan
Genre
Fiction
ISBN13
9789355629470
Book Category
Fiction Books
BISAC Subject Heading
FIC000000
Book Subcategory
General Fiction Books
Edition
1st
Language
Hindi
Contributors
Author Info
गीता सिंह मूलतः बिहार के भोजपुर जिले के कुल्हरिया ग्राम की हैं। माता श्रीमती मोतीराज देवी कर्मठ गृहिणी थीं और पिता श्री बीरेंद्र प्रताप सिंह विद्वान कृषि वैज्ञानिक एवं बिहार सरकार के कृषि विभाग में निदेशक थे। माता-पिता दोनों को पुस्तकों से अतिशय अनुराग था, जो लेखिका को विरासत में मिला।
लिखने की प्रेरणा भी उन्हीं से मिली। लेखिका ने श्री जैन बाला विश्राम विद्यालय (आरा), पटना वीमेंस कॉलेज एवं पटना यूनिवर्सिटी से पढ़ाई का सिलसिला पूरा कर वर्ष 1995 में बिहार प्रशासनिक सेवा में प्रवेश पाया। वर्तमान में भारतीय प्रशासनिक सेवा, 2013 बैच की पदाधिकारी हैं।
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