Kans

Kans (Paperback, Bhagwandass Morwal)

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Kans  (Paperback, Bhagwandass Morwal)

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    लेखक
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    Highlights
    • Binding: Paperback
    • Publisher: Vani Prakashan
    • Genre: Novel
    • ISBN: 9789357757737
    • Edition: 1st, 2024
    • Pages: 248
    सर्विस
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  • जानकारी
    काँस ग्रामीण जीवन के आधुनिक चितेरे भगवानदास मोरवाल का ग्यारहवाँ उपन्यास है। इनके पूर्व के उपन्यासों की तरह यह उपन्यास भी भारतीय समाज की जनपदीय गन्ध और लोक-संस्कृति को अपने आप में समाहित किये हुए है। उत्तर भारत के एक राज्य हरियाणा के सबसे पिछड़े ज़िले मेवात अर्थात स्वतन्त्रता पूर्व के पुराने गुड़गाँव ज़िले के मेव समुदाय के लिए बने, मर्दवादी क़ानून की भोथरी धार से लहूलुहान होती चाँदबी, जैतूनी, जैनब, शाइस्ता, समीना, अरस्तून जैसी अनेक धरती-पुत्रियों का इसमें रह-रहकर चीत्कार सुनाई देगा । यह उपन्यास भारतीय समाज के उन. अन्तर्विरोधों पर गहरी चोट करता है, जो रिवाज़े-आम अर्थात कस्टमरी लॉ जैसे अमानुषिक और बर्बर कानूनों के चलते आधुनिक एवं सभ्य कहे जाने वाले समाज में और गहरे होते जा रहे हैं। भारत के अनेक राज्यों की तरह, एक समुदाय में प्रचलित ऐसा क़ानून जिसे न केवल वैधानिकता प्राप्त है, बल्कि आज़ाद भारत में उसका इस्तेमाल उसी के संविधान के विरुद्ध खुलेआम हो रहा है। भारतीय समाज के बहुत से आदिम क़ानूनों की तरह, जिनके आगे न शास्त्र की चलती है, न शरा की, उन्हीं में से यह रिवाज़े-आम ऐसा ही क़ानून है। यदि चलती है तो सिर्फ़ उस विधान की जो स्त्री को केवल और केवल दूसरे दर्जे का नागरिक मानने में यक़ीन करता है। जिस देश का संविधान स्त्री को, उसके अधिकारों की रक्षा का वचन देता है, और जिसकी नज़र में हरेक नागरिक को समानता का अधिकार प्राप्त है, उसी देश की अनगिनत बेटियों को इस क़ानून की आड़ में पैतृक सम्पत्ति से वंचित कर, जिस तरह उन्हें दर-दर की ठोकर खाने पर विवश होना पड़े-क्या यह न्याय संगत है? यह उपन्यास अपनी ही धरती-पुत्रियों की राह में उनके पालनहारों द्वारा उनकी राह में बिछाये जाने वाले क़ानूनी काँटों, और उनसे पैदा होते मर्मान्तक कष्टों का एक ऐसा दुर्दम्य आख्यान है, जिससे गुज़रना मानो अपने ही असहनीय दुःखों से गुज़रना है। यह केवल चाँदबी, जैतूनी, जैनब, शाइस्ता, समीना, अरस्तून की कहानी नहीं है, बल्कि इन जैसी अनेक दुहिताओं की कहानी है, जो आज भी भारतीय समाज में काँस की तरह किसी अनचाही घास से कम नहीं हैं। एक ऐसी अनचाही घास जो चौमासे के बाद धरती की सख़्त देह को फोड़ अपने आप उग आती है।
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    Specifications
    Book Details
    Publication Year
    • 2024
    Contributors
    Author Info
    • भगवानदास मोरवाल - जन्म : 23 जनवरी, 1960 ज़िला मेवात हरियाणा के क़स्बे नगीना में। शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी) एवं पत्रकारिता में डिप्लोमा । कृतियाँ : काला पहाड़ (1999), बाबल तेरा देस में (2004), रेत (2008), नरक मसीहा (2014), हलाला (2015), सुर बंजारन (2017), वंचना (2019), शकुंतिका (2020), खानज़ादा (2021), मोक्षवन (2023), काँस (2024) (उपन्यास); सीढ़ियाँ, माँ और उसका देवता (2008), लक्ष्मण-रेखा (2010), दस प्रतिनिधि कहानियाँ (2014), धूप से जले सूरजमुखी (2021), महराब और अन्य कहानियाँ (2021), कहानी अब तक (दो खण्ड) (2023), चुनी हुई कहानियाँ (2024) (कहानी-संग्रह); पकी जेठ का गुलमोहर (2016) एवं यहाँ कौन है तेरा (2023) (स्मृति-कथा) । दोपहरी चुप है (1990) कविता-संग्रह तथा बच्चों के लिए कलयुगी पंचायत (1997) एवं अन्य दो पुस्तकों का सम्पादन । कुछ कृतियों का अंग्रेज़ी व अनेक भारतीय भाषाओं में अनुवाद । सम्मान/पुरस्कार : 'वनमाली कथा सम्मान' (2019), उपन्यास रेत के लिए 'स्पंदन कृति सम्मान' (2017), 'जनकवि मेहरसिंह सम्मान' (2010) हरियाणा साहित्य अकादमी, 'अन्तर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान' (2009) कथा (यूके) लन्दन, उपन्यास रेत के लिए 'शब्द साधक ज्यूरी सम्मान' (2009), 'कथाक्रम सम्मान', लखनऊ (2006), 'साहित्यकार सम्मान' (2004) हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार; 'साहित्यिक कृति सम्मान' (1994) हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार; 'साहित्यिक कृति सम्मान' (1999) हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार; पूर्व राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमण द्वारा मद्रास का 'राजाजी सम्मान' (1995), 'डॉ. अम्बेडकर सम्मान' (1985) भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली; पत्रकारिता के लिए 'प्रभादत्त मेमोरियल एवार्ड' (1985) तथा 'शोभना एवार्ड' (1984)। जनवरी 2008 में ट्यूरिन (इटली) में आयोजित भारतीय लेखक सम्मेलन में शिरकत । पूर्व सदस्य, हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार एवं हरियाणा साहित्य अकादमी । सम्पर्क : WZ-745G, दादा देव रोड, नज़दीक बाटा चौक, पालम, नयी दिल्ली-110045 मोबाइल : 9971817173; ई-मेल : bdmorwal@gmail.com
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