Kavi Jeevan Ke Agyat Paksh

Kavi Jeevan Ke Agyat Paksh  (Hindi, Hardcover, unknown)

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      डिलीवरी17 नवंबर, सोमवार
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    लेखक
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    Highlights
    • Language: Hindi
    • Binding: Hardcover
    • Publisher: Vani Prakashan
    • Genre: Literary Collections
    • ISBN: 9789357755306
    • Edition: 1st, 2024
    • Pages: 446
    सर्विस
    • कैश ऑन डिलीवरी उपलब्ध
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  • जानकारी
    दिनकर के पत्र' एक संघर्षरत, संवेदनशील युवक की कहानी कहते हैं जिनमें संक्रमणकाल में घोर ग़रीबी से उठाकर, सारे परिवार का बोझा ढोते हुए, भीतर से टूट जाने पर भी उसने अन्तिम साँस तक जूझने की बान नहीं छोड़ी। विदेह की मिट्टी की उपज होने के कारण उसने भोग में ही योग को छिपा रखा था- 'योग भोग महँ राख्यो गोई'। शिवपूजन सहाय से सन् 1934 में प्रथम परिचय के क्षण से, महाप्रयाण (24 अप्रैल 1974) की वेला तक, चालीस वर्षों का यह आयाम साहित्य और राजनीति के विभिन्न उल्लासों एवं अन्तर्द्वन्द्वों को उद्घाटित करता है। शिवपूजन सहाय से सान्निध्य प्राप्त करने की चेष्टा, 'रेणुका' के प्रकाशन की योजना, माखनलाल जी से उसकी भूमिका लिखाने की व्यग्रता, बेनीपुरी की आत्मीयता, बनारसीदास चतुर्वेदी के साहचर्य से प्रकाशन का क्रम बनाये रखने की तत्परता, सब-रजिस्ट्रार की हिम्मत से जूझने की सन्नद्धता, नेशनल-वार-ग्नंट से दो बार इस्तीफा देने की आतुरता, 'अंग्रेज़ी सरकार द्वारा तीन वर्ष में 22 बार ट्रांसफर किये जाने की यातना और सबसे अधिक पारिवारिक विघटन के कारण भीतर ही भीतर टूटने की प्रक्रिया-एक यात्रा की हर्ष-विषाद-मिश्रित दास्तान हैं। बनारसीदास जी को लिखे पत्रों में मालूम पड़ता है कि सन् 1960 से ही उनके टूटने का क्रम चालू हो गया था। इस प्रकार लगभग 14 वर्ष, भीतर ही भीतर यह अन्तर्द्वन्द्व उन्हें मथता रहा। मधुमेह, रक्तचाप और सबसे अधिक 'उर्वशी' को पूर्ण करने की चिन्ता, अपने ज्येष्ठ पुत्र रामसेवक की असाध्य बीमारी से घबराकर 8-2-67 के पत्र में उन्होंने चतुर्वेदी जी को लिखा था -"पण्डित जी...सोचता हूँ, यह किस पाप का दण्ड है। भाइयों ने मुझे 1931 में बाँटकर अलग कर दिया, मगर बेटियाँ और बेटे मेरे माथे पर पटक दिये। मैंने भी शान्तभाव से उसे स्वीकार कर लिया..." अन्त में रामसेवक की असामयिक मृत्यु से तो वे टूट ही गये । दिनकर के पत्र प्रकाशित करने का यह अनुष्ठान इस दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण है कि इसमें महाकवि के जीवन के अनेक विलुप्त सूत्र उपलब्ध हो जाते हैं। निश्चय ही दिनकर के पत्रों का यह संग्रह हिन्दी साहित्य की बहुमूल्य थाती है। -इसी पुस्तक से
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    Specifications
    Dimensions
    Weight
    • 450 gr
    Book Details
    Imprint
    • Vani Prakashan
    Publication Year
    • 2024
    Contributors
    Author Info
    • रामधारी सिंह 'दिनकर' - 23 सितम्बर 1908 को मुंगेर के सिमरिया ग्राम में एक किसान परिवार में जन्म। बचपन से ही कठोर जीवन-संग्राम से गुज़रने के कारण उनके व्यक्तित्व का जुझारूपन अन्त तक बना रहा और वही उनकी रचनाओं में भी अभिव्यक्त हुआ । 1932 में बी.ए. ऑनर्स के बाद एक नये स्कूल के प्रधानाध्यापक हुए, फिर सब-रजिस्ट्रार । अपने ओजस्वी व्यक्तित्व और लोकप्रियता के कारण राज्यसभा के सदस्य भी मनोनीत हुए । रेणुका, हुंकार के बाद वे काव्य-जगत् में छाते ही चले गये : विद्रोही कवि के रूप में ही नहीं उर्वशी जैसे महाकाव्य के स्वजेता के रूप में भी । उन्होंने 60 से अधिक कृतियों का सृजन किया है। संस्कृति के चार अध्याय उनकी एक और महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। अपनी ओजस्विता एवं भावात्मक प्रकृति के कारण उनके काव्य को 'दहकते अंगारों पर इन्द्रधनुषों की क्रीड़ा' से ठीक ही उपमित किया गया। 'पद्म भूषण' से अलंकृत तथा 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित श्री दिनकर 24 अप्रैल 1974 को दिवंगत हुए। ܀܀܀ कन्हैयालाल फूलफगर - अध्यात्म के शिखर-पुरुष आचार्यश्री तुलसी की जन्मभूमि लाडनूँ (राज.) के निवासी श्री कन्हैयालाल फूलफगर का जन्म 4 जनवरी 1931 को कलकत्ता में, सुप्रसिद्ध समाजसेवी श्री चम्पालाल फूलफगर के घर पुत्र रूप में हुआ । गणाधिपति श्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ का भरोसेमन्द एवं अति कृपा-पात्र व्यक्ति होने का सौभाग्य प्राप्त है। राष्ट्रकवि दिनकर, कविवर भवानीप्रसाद मिश्र, कथामनीषी जैनेन्द्र कुमार, बांग्ला उपन्यासकार श्री बिमल मित्र आदि प्रख्यात साहित्यकारों से इनके आत्मीय सम्बन्ध रहे । ܀܀܀ अरविन्द कुमार सिंह - साहित्यकार, कवि एवं लेखक, प्रबन्ध न्यासी व सचिव-दिनकर संस्कृति संगम न्यास । शिक्षा : एम.बी., एम.कॉम., एल.एल.बी. । प्रमुख पुस्तकें : काव्य-पुस्तक : नदी; संस्मरण : दिनकर के आसपास; सम्पादन : ज्योतिर्धर कवि दिनकर, शेष निःशेष, संसद में दिनकर, कविता की पुकार, दिनकर के पत्र आदि । सम्मान : थावे विद्यापीठ द्वारा मानद 'विद्या वाचस्पति' की उपाधि, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा 'हिन्दी रत्न सम्मान', बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा 'नवोदित साहित्यकार पुरस्कार', सन् 1991 में तत्कालीन माननीय उपराष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा 'राष्ट्रकवि दिनकर प्रतिभा सम्मान', विश्व हिन्दी परिषद् एवं केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा 'राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' हिन्दी रत्न सम्मान' एवं आस्था साहित्य संस्थान अलवर, राजस्थान द्वारा सम्मानित । 'पी.सी. इंडियन एचिवर्स अवार्ड' जो राष्ट्रकवि दिनकर जी को मरणोपरान्त दिया गया, वह केन्द्रीय मन्त्री माननीय श्री नितिन गडकरी से प्राप्त किया। "चैम्पियन ऑफ़ चेंज अवार्ड' जो राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' जी को मरणोपरान्त दिया गया, वह भारत के पूर्व राष्ट्रपति माननीय श्री रामनाथ कोविन्द जी के द्वारा प्रदान किया गया। सत्यम् शिवम् सुन्दरम् ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट की ओर से 'बिहार गौरव सम्मान' की प्राप्ति । इसके अतिरिक्त विभिन्न साहित्यिक और सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित । सन् 2015 में भारत के प्रधानमन्त्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 'दिनकर परिवार' को सम्मानित करने के क्रम में सम्मानित । विभिन्न टी.वी. चैनलों में वार्ता और संवाद । स्थायी निवास : दिनकर भवन, आर्य कुमार रोड, पटना-800004
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