रंग रंगीला प्रजातंत्र -
सतर्क और चौकस निगाह से मौजूँ मुद्दों को देखने वाले ऋषभ जैन का यह पहला व्यंग्य संग्रह है। इस संग्रह में छोटे-छोटे व्यंग्य संग्रहित हैं। कम से कम शब्दों में अपनी बात कहना और उसमें व्यंग्य की मार भी कर लेना इन्हें पसन्द है। सामाजिक सारोकारों से लेकर राजनैतिक और सरकारी तंत्रों पर और उनकी क्रियाकलापों पर ये व्यंग्य करने से नहीं चूकते। सबसे ख़ास बात यह है कि ऋषभ के व्यंग्य किन्हीं मुहावरों से प्रभावित नहीं हैं, यह भी कि किसी व्यंग्यकार की छाप इनके आसपास कहीं नहीं है। इनकी ख़ुद की शैली है, ख़ुद की भाषा है। संग्रह के कुछ व्यंग्य प्रभावित करते हैं, जैसे—'किसिम किसिम की आचार संहिताएँ', 'ब्रेकर मुक्त सड़क और एयरपोर्ट जैसे स्टेशन', 'रेल्वे के बेडरोल-माले मुफ़्त दिले बेरहम', 'सबसे बड़ा सोशियल मीडिया अन्वेषण ब्यूरो', 'देवत्व को उपलब्ध वीवी पैट', 'राजनीति की बैलेंस शीट का गणित और विज्ञान', 'बुलेट ट्रेन और हाइपर लूप'। सड़कों के रख-रखाव को लेकर ये कहते हैं कि वर्षा के सापेक्ष सड़क की स्थिति यूँ होती है मानों वक़्त सारी ज़िन्दगी में दो ही गुज़रे हैं कठिन, इक तेरे आने के पहले इक तेरे जाने के बाद। रेलवे के हाल पर व्यंग्य करते हुए ये रेलवे यात्रियों पर व्यंग्य करना नहीं छोड़ते। ये कहते हैं 'दरअसल रेलवे स्टेशन के सौ मीटर पहले ही इन्सान के भीतर बेईमानी जागृत होती है। इसका मतलब यह न निकालें कि पहले वह सौ फ़ीसदी ईमानदार था। पहला तो वह टिकिट ही नहीं लेगा, लिया तो जनरल से स्लीपर में घुसेगा'। यहीं वे कहते हैं कि वातानुकूलित श्रेणी के प्रति तो हमारी फ़ैंटेसी ज़बरदस्त है। इस शब्द के उच्चारण पर पैदा हुई ध्वनि मात्र ही शीतलता प्रदाता है। अपने व्यंग्य में ये कभी लतीफ़ घोंघी को याद दिलाते हैं कभी हरिशंकर परसाई को। वी वी पैट के बारे में ये लिखते हैं कि यह बहुत ऊँची चीज़ है। यह देवत्व को उपलब्ध है। यह इससे भी ज़ाहिर होता है कि यह मतदाता को मात्र सात सैकंड को दर्शन देती है। लेखक राजनीति पर कई बार व्यंग्य करते हैं, वे कहते हैं 'कुछ लोग होते हैं जो अपनी आजीविका ही राजनीति को बना लेते हैं। इन्हें नेता कहा जाता है।' फिर वे कहते हैं, 'जी.डी.पी. का सौन्दर्य बहुआयामी है। इसका फोनेटिक जादुई है। उच्चारण मात्र से जनता सम्मोहित हो जाती है।' इस तरह इस संग्रह से कई स्थानों पर व्यंग्य के ज़रिये विभिन्न विषयों को सामने लाने का प्रयास किया गया है।
ऋषभ अपने पहले व्यंग्य संग्रह में ही हम सबको आशान्वित करते हैं। उनके भविष्य के लिए हम कामना करते हैं कि इस दिशा में निरन्तर आगे बढ़ते रहें। —संजीव बख्शी (उपन्यास भूलन कांदा के कथाकार)