'स्वरदर्शन' पुस्तक संगीत जगत में मील का पत्थर है।इसमें दार्शनिक विश्लेषण व्याख्या की गयी है कि सांगीतिक स्वर की अवधारणा क्षेत्रीय या जातीय विशेष नहीं होती है, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए इसकी अवधारणा समरूप में कल्याणकारी है। संगीत से यह भाव प्रस्फ़ुटिक होता है-- वह कर्ण प्रिय लय-तरंगे, जिससे श्रोता का चेतन-अचेतन मष्तिक झंकृत होकर नई ऊर्जा, नई शक्ति प्राप्त करे।
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Specifications
बुक
स्वर दर्शन
ऑथर
डॉक्टर प्रकाश कुमार, प्रियंका श्रीवास्तव
बाइंडिंग
पेपरबैक
पब्लिशिंग की तारिख
2005
पब्लिशर
पिलग्रिम्स पब्लिशिंग
नंबर ऑफ पेज
179
लैंग्वेज
हिंदी
सब्जेक्ट
म्यूज़िक
टू लैंग्वेज
हिंदी
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