जब कभी भी भारतीय साहित्य के इतिहास की चर्चा होगी तो वह गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर के नाम के बिना अधूरी ही रहेगी। भारतीय साहित्य गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर के योगदान के लिए सदैव उनका ऋणी रहेगा। वे अकेले ऐसे भारतीय साहित्यकार हैं जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला है। वह नोबेल पुरस्कार पाने वाले प्रथम एशियाई और साहित्य में नोबेल पाने वाले पहले गैर यूरोपीय भी थे। वह दुनिया के अकेले ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान हैं - भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बाँग्ला’ रबीन्द्रनाथ टैगोर की ही रचनाएँ हैं। गुरुदेव एवं कविगुरु, रबीन्द्रनाथ टैगोर के उपनाम थे। इन्हें रबीन्द्रनाथ ठाकुर के नाम से भी जाना जाता है। आठ साल की उम्र में उन्होंने पहली कविता लिखी और तकरीबन 51 साल की उम्र में ‘गीताजंलि’ लिखकर दुनिया का सबसे बड़ा नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया। ‘गीतांजलि’ लोगों को इतनी पसंद आई कि बाद में इसका जर्मन, फ्रेंच, जापानी, रूसी आदि प्रमुख भाषाओं में अनुवाद किया गया। एक महान कवि होने के साथ ही, वो एक मानवतावादी, देशभक्त, चित्रकार, उपन्यासकार, कहानी लेखक, शिक्षाविद् और दर्शनशास्त्री भी थे। वो देश के सांस्कृतिक दूत थे जिन्होंने पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति के ज्ञान को फैलाया है। वो अपने समय के एक प्रतिभासम्पन्न बच्चे थे जिसने बहुत महान कार्य किये। कविता लेखन के क्षेत्र में वो एक उगते सूरज के सामान थे। कविताओं या कहानी के रुप में अपने लेखन के माध्यम से लोगों के मानसिक और नैतिक भावना को अच्छे से प्रदर्शित किया। आज के लोगों के लिये भी उनका लेखन अग्रणी और क्रांतिकारी साबित हुआ है। जलियाँवाला बाग नरसंहार की त्रासदी के कारण वो बहुत दुःखी थे जिसमें जनरल डायर और उसके सैनिकों के द्वारा अमृतसर में 1919 में 13 अप्रैल को महिलाओं और बच्चों सहित बहुत सारे निर्दोष लोग मारे गये थे। वो एक महान कवि होने के साथ ही एक देशभक्त भी थे जो हमेशा जीवन की एकात्मकता और इसके भाव में भरोसा करता है। अपने पूरे लेखन के द्वारा प्यार, शांति और भाईचारे को बनाये रखने के साथ ही उनको एक रखने और लोगों को और पास लाने के लिये उन्होंने अपना सबसे बेहतर प्रयास किया। अपनी कविताओं और कहानियों के माध्यम से प्यार और सौहार्द के बारे में उन्होंने अच्छे से बताया था। टैगोर के पूरे जीवन ने एक दूसरे से प्यार और सौहार्द के स्पष्ट विचार को भी उपलब्ध कराया। लेखन में उनकी लगातार सफलता ने भारत के आध्यात्मिक विरासत की एक प्रसिद्ध आवाज बनने के लिये उनको काबिल बनाया। मनासी, सोनर तारी, गीतांजलि, गीतिमलया, बलाका आदि जैसे उनके कविताओं के कुछ अद्वितीय संस्करण हैं। कविताओं के अलावा, वो नृत्य नाटक, संगीत नाटक, निबंध, यात्रा वृतांत, आत्मकथा आदि लिखने के लिये भी प्रसिद्ध थे।