Berojgari Ka Chhatra

Berojgari Ka Chhatra (Hardcover, Prof. Manu)

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    Highlights
    • Binding: Hardcover
    • Publisher: Vani Prakashan
    • Genre: Poetry Collection
    • ISBN: 9789357756952
    • Edition: 1st, 2023
    • Pages: 130
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  • Description
    प्रकृति हमें सृजित करती है और मनुष्य बनने में अहम भूमिका निभाती है । हम इससे सम्बद्ध रहकर ही अपनी मनुष्यता का फ़लक ऊँचा रख सकते हैं और लिख सकते हैं संघर्ष और इश्क़ की इबारतें। प्रो. मनु के नये संग्रह बेरोज़गारी का छतरा की कविताओं का यही मूल स्वर है और अपने इस मूल स्वर के ज़रिये वे अपनी दृष्टि और संवेदना का जो परिचय देते हैं, वह अपने अर्थबोध में गहरा प्रभाव डालता है । ‘परिन्दा इन्सान की तरह/पौधा नहीं लगाता है/ मगर इन्सान से कई गुना / ज़मीन को बचाते हुए / जंगल बसा देता है'... तब भी हम जंगल काटते जा रहे और संकट में डाल रहे न सिर्फ़ मानव बल्कि पंछियों की तरह जाने कितने जीवों को। इसलिए कवि कामना करता है कि कोई 'लौटा दे हमें अपना बचपन' जहाँ पहाड़, नदियाँ, जंगल, बारिश की तरह बहुत - बहुत कुछ शेष । इस आधुनिक दुनिया में कवि की एक बड़ी चिन्ता यह भी है कि आबादी की आज जो मैराथन दौड़ है, यह ख़तरे से ख़ाली नहीं, इससे सुविधाएँ तो कम पड़ती ही हैं, विकास भी अवरुद्ध हो जाता है। ऐसे में बदहाली और बेरोज़गारी का जो दौर शुरू होता है, वह भूख और भविष्य दोनों को निगलने लगता है । अनपढ़ ही नहीं, जो पढ़े-लिखे वे भी लम्बी क़तारों में खड़े नज़र आने लगते हैं, नज़र आने लगता है हर ओर बेरोज़गारी का छतरा । पलायन की टीस अपनों को रह-रहकर बेचैन करने लगती है । रोटी की तलाश में गया युवक ट्रेन हादसे का शिकार होता है और 'लाशों के ढेर में, दूर से आया बूढ़ा / अपने बेटे को तलाशता है' और 'वह हर लाश को अश्क-भरी आँखों से/ताकते हुए / आगे बढ़ जाता है', ढूँढता रहता है । जब स्थितियाँ इस तरह प्रतिकूल हों तो जो थोड़े सपने थोड़ा प्रेम, वही आसरा इस ठीहे जीने-रचने का क्योंकि उसकी नमी जड़ों को सींचती ही नहीं छाया भी देती है - 'क्या कोई छोड़ दे मोहब्बत / गुरबत की ज़द से/परिन्दे फल बिन शजर पे भी अपना घोंसला बना लेते हैं ।' 'नदियाँ सूख जाती हैं/ सागर कभी सूखता नहीं ।' 'हरदम ख़ैरियत / पूछने की ताक़त / सिर्फ़ मोहब्बत में ही है।' कवि के पास प्रेम के ऐसे कई शेड्स हैं जो जीवन के गाढ़े समय का माकूल दृश्य रचते हैं और अपने सरोकार को एक संवेदनात्मक घनत्व में मूर्त करते हैं । निस्सन्देह, इस संग्रह में अपने समय, समाज, सभ्यता, संस्कृति और व्यवस्था आदि के परिप्रेक्ष्य में ऐसी कई कविताएँ हैं जो रोज़ घटित उसे बहुत क़रीब से देखती और बयान करती हैं। इस उम्मीद के साथ कि 'कई इंक़लाब / हमने देखे / कुकुरमुत्ते का इंक़लाब / हमें न चाहिए / हमें भूख का / झींगुर का इंक़लाब चाहिए वहाँ समझौता है कहाँ ? / दर्द-भरी घुटन में भी / हमें आस है/नये साल का !'
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    Specifications
    Book Details
    Publication Year
    • 2023
    Contributors
    Author Info
    • प्रो. मनु - जन्म : 1964, केरल राज्य के कण्णुर ज़िला के तलश्शेरी के एरज्ञोली गाँव में । शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), एम.ए. (अंग्रेज़ी), एम.ए. (उर्दू), पीजीडीटी, पीजीडीपीआर, पीजीडीटीएम, पीजीसीएमएचटी, पीजीसीजीपीएस, पीजीडीएसीई, एम.फिल., पीएच.डी । प्राध्यापक के रूप में 1988 से 1999 तक महात्मा गांधी गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज, माही (संघ राज्य पांडिचेरी) में कार्यरत । 1999 से 2022 तक श्री शंकराचार्य विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफ़ेसर और प्रोफ़ेसर के तौर पर, सम्प्रति 2022 से अब तक केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय, कासरगोड के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर और विभागाध्यक्ष के तौर पर कार्यरत हैं। प्रकाशित रचनाएँ : हम इन्तज़ार में हैं (काव्य-संग्रह); यह काव्य-संग्रह सरकारी व्रण्णन कॉलेज; (कण्णूर विश्वविद्यालय) के एम.ए. पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। हम बेघर हैं (काव्य-संग्रह); यह काव्य-संग्रह कुवेंपु विश्वविद्यालय, शिमोगा, कर्नाटक के एम.ए. हिन्दी पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। अर्जुन Vs एकलव्य (काव्य-संग्रह)। कुछ चुनी हुई कविताएँ, कन्नूर विश्वविद्यालय एवं केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में पढ़ाने के लिए हैं। विभिन्न पत्रिकाओं में कविताओं तथा शोधपरक आलेखों का प्रकाशन । पुरस्कार : केरल हिन्दी साहित्य अकादमी, राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन (केरल) ओ. आबू स्मारक पुरस्कार और राष्ट्रीय युवा उत्सव । पता : केरल । Visit : Youtube poem of dr. Manu (1) वन्दे मातरम् वन्दे भारतम (प्रो. डॉ. मनु) (2) दर्दे-बँटवारा (प्रो. मनु)
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