टोकरी भर रात लेकर, मैं चली अब चाँद लेने। “धूप और छाँव के बीच” एक बहते समंदर की तरह है। इस किताब में आपको हर तरह की भावनाओं में डूबने और डूब कर किनारों पर आकर ठहरने का अनुभव मिलेगा। किताब में आप जैसे-जैसे गहराई में डुबकी लगाएँगे, तो कभी धूप में, कभी छाँव में और कभी धूप-छाँव के बीच ख़ुद को अपनी ही दुनिया में पाएँगे। कभी आप मुहब्बत में उड़ान भरते परिंदे, तो कभी बेवफ़ाई और विरह की प्यास से दम तोड़ते पपीहे-सा महसूस करेंगे। जैसे ही आपको लगेगा आपने पूरी दुनिया जीत ली है, वैसे ही एक नई ख़्वाहिश का जन्म होगा और आप फिर नींद से जाग उठेंगे। आप अपनी ख़्वाहिशों का कोई अंत न होने की वजह से फिर से हारा हुआ महसूस करेंगे। उसी बीच फिर एक पंक्ति आएगी, जो आपको कुछ पल के लिए मौन कर देगी। हर कविता की एक अपनी अलग ख़ुशबू और पहचान है। कुछ पन्नों पर आपको इस देश के आज़ाद होने के बाद भी महिलाओं पर हो रही तानाशाही की चीख़ें सुनाई देंगी, तो कहीं पर प्रकृति पर हो रहे अत्याचारों के ख़िलाफ़ बग़ावत की आग दिखाई देगी। हर पन्ने पर भावनाओं को बड़ी ही ईमानदारी और ख़ूबसूरती से तराशने की कोशिश की गई है, ताकि पाठक उसे ख़ुद से जोड़ पाए। साथ ही, आप बेहद बारीकी से महसूस कर पाएँगे बचपन के गाँव, पहाड़ों की वादियों से लेकर शहर तक का सफ़र और उस सफ़र का तजुर्बा... यह बहते समंदर का एक एक ऐसा ठहराव है जो किसी ख़ानाबदोश को सरहद पार से आती तेज़ हवा के छूने से महसूस होता है और धीरे से बिना कुछ कहे निकल जाता है। क्यों न इस पल अपनी मंज़िल की तरफ़ आगे बढ़ते हुए, आसमान के और क़रीब वाली दुनिया का एहसास “धूप और छाँव के बीच” राह में थोड़ा-सा ठहर कर महसूस किया जाए! “ज़रा-सा ठहर जा राही चला है दूर तक तू।“
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Specifications
Book Details
Imprint
Notion Press Media Pvt Ltd
Dimensions
Width
10 mm
Height
203 mm
Length
127 mm
Weight
186 gr
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