ध्रुवस्वामिनी -
'ध्रुवस्वामिनी' जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रसिद्ध कालजयी हिन्दी नाटक है। यह प्रसाद की अन्तिम और श्रेष्ठ नाट्य-कृति है।
इसमें तत्कालीन स्त्री की समस्या को गम्भीरता से उठाया गया है।
प्रसाद जी ने इस नाटक द्वारा स्त्री की समस्याओं को उठाया ही नहीं बल्कि इनके विरुद्ध अनेक पात्रों के विद्रोह को भी दर्शाया है। कोमा जहाँ मन-ही-मन अपने साथ हो रहे अन्याय को सहन कर जाती है वहीं मन्दाकिनी और ध्रुवस्वामिनी नारी के विरुद्ध सदियों से चली आ रही कुप्रथाओं के विरुद्ध आवाज़ उठाती हैं। इस नाटक का विरोध हिन्दी साहित्य के कवियों और लेखकों ने किया लेकिन इसी नाटक के कारण स्वतन्त्रता संग्राम में स्त्रियाँ अपने अधिकारों के लिए जागरूक भी हुईं।
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Specifications
Book Details
Publication Year
2019
Contributors
Author Info
जयशंकर प्रसाद -
जयशंकर प्रसाद के नाटकों के बिना हिन्दी नाटकों पर की गयी कोई भी बातचीत अधूरी होगी। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने नाट्य विधा को जिस मुकाम पर छोड़ा था, प्रसाद ने अपनी नाट्य सृजन यात्रा वहीं से शुरू की। भारतेन्दु ने अपने समय के नये नाटकों के पाँच उद्देश्य बताये थे—श्रृंगार, हास्य, कौतुक, समाज, संस्कार और देश-वत्सलता। ये सभी प्रसाद के नाटकों में भी मिलते हैं लेकिन प्रसाद की विशेषता यह है कि वे अपने नाटकों को इन उद्देश्यों से आगे ले जाते हैं। उनके नाटकों में राष्ट्रीयता, स्वाधीनता संग्राम और पुनर्जागरण के स्वप्नों को विशेष महत्त्व मिला है। उनकी प्रमुख नाट्य कृतियाँ हैं—विशाख (1921), आजतशत्रु (1922), कामना (1924), जनमेजय का नागयज्ञ (1926), स्कन्दगुप्त (1928), एक घूँट (1930), चन्द्रगुप्त (1931, इसे आरम्भ में 'कल्याणी परिणय' के नाम से लिखा गया था), और ध्रुवस्वामिनी (1933)। कहने की आवश्यकता नहीं कि 'ध्रुवस्वामिनी' प्रसाद के उत्कर्ष काल की रचना है। इसमें उनकी प्रतिभा, अध्यवसाय और कलात्मक संयम—सबके चरम रूप के दर्शन होते हैं। याद रखना चाहिए कि यह वही कालखण्ड है जब वे 'कामायनी' जैसी कालजयी कृति की रचना के लिए आवश्यक तैयारियों में संलग्न रहे होंगे।
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