दुनिया की क़ैद में ज़िंदगी शुरू होती है और अंत भी उसी क़ैद में हो जाता है। फिर भी हर किसी को महसूस होता रहता है या हर कोई मान लेता है कि वो आज़ाद हैं। मगर हम उन लोगों में से हैं जिन्हें खुद नहीं पता कि वो आज़ाद हैं या क़ैद में,बस इतना मालूम है कि ज़िंदा हैं। क्योंकि ये भी मुमकिन है कि जो खुद को आज़ाद समझता है,वो दरअसल हर पल किसी क़ैद में जी रहा हो। और जो खुद को क़ैद में समझता है,शायद वही सबसे ज़्यादा आज़ाद हो।