उपन्यास का आगमन उस शून्य को भरने के लिए हुआ जो महाकाव्य के अवसान से पैदा हुआ था । उपन्यास के सामने एक नई दुनिया थी जिसे ईश्वरवादी आस्था और भाग्यवादी विश्वासों से नहीं समझा जा सकता था। तकनीकी विकास और तार्किक विचारों के आघात से समाज का पुराना ढाँचा टूट रहा था और नया जो कुछ बन रहा था उस पर अनिश्चय का कोहरा था । नये मानवीय सम्बन्धों और जीवन-विवेक से उभर रहे प्रश्नों के उत्तर न तो शास्त्र में थे, न ही समाज के पुराने संगठन में । जीवन को रचना में रूपान्तरित करने के लिए उपन्यास के पास कोई बनी-बनाई सैद्धान्तिकी नहीं थी । उसके विषय, रूप और सरोकारों में जो विस्मयकारी विविधता है उसका कारण जीवन के साथ उसका खुला और जीवन्त सम्बन्ध है । एक विधा के रूप में उपन्यास का ढाँचा जब इतना अनिश्चित और गतिमान है तो उसके मूल्यांकन के प्रतिमान स्थिर और फार्मूलाबद्ध कैसे हो सकते हैं? इस किताब में हिन्दी के कुछ कालजयी उपन्यासों का अध्ययन है। कोशिश है कि निष्कर्ष से विश्लेषण करने की बजाय उस जीवन को समझा जाए जो काल्पनिक होते हुए भी उपन्यास के परिसर में सच जैसा है । समाज-विज्ञानों के लिए ग़ैरज़रूरी लेकिन रचना के लिए अनिवार्य प्रसंगों पर मेरी निगाह अधिक टिकी है क्योंकि उन्हीं में वह जीवन है जहाँ मानवीय यथार्थ और उसका भाव-जगत धरती और आकाश की तरह मिलकर नये क्षितिज का निर्माण करते हैं ।
★★★
'गोदान' की महानता औपनिवेशिक भारत के किसानी जीवन के संघर्ष और उसकी त्रासदी, या किसानी संस्कृति के अवसान की महागाथा- दोनों में हो सकती है, लेकिन उसका महत्त्व जीवन के मार्मिक प्रसंगों के चित्रण में ही है जो उसे एक सार्वकालिक रचना बनाती है। उपन्यास के आरम्भ में ही छत्तीस साल की धनिया जब अपनी ढली देह, पके बाल और आँखों की कम होती रोशनी के साथ सामने आती है तो एक झटका-सा लगता बाज़ार की दुनिया में दूधिया गोरेपन के साथ झिलमिलाती स्त्री की परी-देह के जादू को धनिया एक झटके से तोड़ देती है और हम महसूस करते हैं कि इस उपभोक्तावादी तन्त्र का सौन्दर्य, व्यवस्था की क्रूरता के मंच पर खड़ा है।
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Specifications
Book Details
Publication Year
2024
Contributors
Author Info
रामेश्वर राय -
जन्म : 1960 मिदनापुर (पश्चिम बंगाल) ।
शिक्षा : आरम्भिक शिक्षा बिहार के पैतृक गाँव में, इण्टर : बी. एन. कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. (हिन्दी आनर्स) एवं एम.ए. (हिन्दी) : हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से और दिल्ली विश्वविद्यालय एम. फिल्. तथा पीएच.डी. ।
प्रकाशन : कविता का परिसर : एक अन्तर्यात्रा, 'निबन्धों की दुनिया' शृंखला के अन्तर्गत रामविलास शर्मा, निराला तथा मलयज के निबन्धों का संकलन-सम्पादन ।
महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के लिए प्रो. निर्मला जैन के आलोचनात्मक निबन्धों का 'संचयिता' शीर्षक से संकलन-सम्पादन ।
पत्र-पत्रिकाओं में छिटपुट लेखन ।
सम्प्रति : हिन्दू कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) में एसोसिएट प्रोफेसर
सम्पर्क : दिल्ली-110085