Mahamati Prannath : Tartam Bani Vimarsh

Mahamati Prannath : Tartam Bani Vimarsh (Paperback, Ranjit Saha)

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Mahamati Prannath : Tartam Bani Vimarsh  (Paperback, Ranjit Saha)

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    Highlights
    • Binding: Paperback
    • Publisher: Vani Prakashan
    • Genre: Criticism
    • ISBN: 9789357756327
    • Edition: 1st, 2023
    • Pages: 348
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  • Description
    महामति प्राणनाथ व्यक्ति के तौर पर एक लोकसाधक ही थे इसलिए उन्होंने सामाजिक, सामासिक, साम्प्रदायिक उत्कर्ष के साथ समष्टिगत सौमनस्य को जागनी पर्व या अभियान के साथ जोड़ा। उत्तर मध्यकाल में पश्चिमोत्तर भारत के जनमानस को सत्ता पक्ष ने बुरी तरह झिंझोड़ रखा था। संशय और अविश्वास के उस संक्रमणकालीन दौर में, एक कट्टर और निरंकुश राजसत्ता की काली छाया में - महामति ने लोगों को एक भयमुक्त समाज और अपनत्वभरा संसार देते हुए आश्वस्त किया था । यह एक महान वैचारिक और व्यावहारिक सामाजिक प्रतिश्रुति थी । इस अभियान में अपना कुछ भी गँवाना या छोड़ना नहीं था बल्कि जो सबका है, सबमें है-उसे सबके साथ पाना और बाँटते हुए, समृद्ध होते जाना था । महामति को अपने इस ऐतिहासिक, आध्यात्मिक और सामाजिक अभियान में सीधे मुगलिया सल्तनत के सबसे अनुदार और इस्लाम के कट्टर शरापसन्द बादशाह औरंगज़ेब से टकराना पड़ा। लगभग चालीस वर्षों तक निरन्तर वे व्यक्ति और समाज, शासक और समुदाय और फिर 'सुन्दर साथ' के साथ पूरी जाति को झिंझोड़ते-झकझोरते रहे। लेकिन इस विरोध में विध्वंस का स्वर नहीं था, वहाँ देश, धर्मादर्श तथा आत्मा-परमात्मा के शाश्वत सम्बन्ध के साथ, सामूहिक जागनी एवं आध्यात्मिक स्तर पर, सार्वजनीन उत्थान का मुखर संकल्प था । महामति ने दो महान् धर्म और संस्कृतियों-हामी और सामी (हेमेटिक और सेमेटिक) के एकीकरण या समायोजन की सम्भावना को इसी आलोक में देखा, परखा और रखा। उनका विश्वास था कि सम्पूर्ण मानवता के कल्याणार्थ इनका समायोजन होगा और दोनों की विराट् धर्म-सांस्कृतिक उपलब्धियों और अवधारणाओं से आस्था और विश्वासविहीन विश्व की मरुभूमि को परस्पर प्रेम एवं सद्भाव से सींचा जा सकेगा। महामति प्राणनाथ का आध्यात्मिक अभियान सामाजिक नवोत्थान के साथ एक ऐसे विश्व समाज और विश्व धर्म के सन्देश से जुड़ा था- जिसकी आकांक्षा सदियों से की जा रही थी। इसलिए उनके प्रशंसकों, अनुयायियों, 'सुन्दर साथ' को और यहाँ तक कि विधर्मी एवं विरोधियों को भी महामति प्राणनाथ-जैसे असाधारण मनीषी के सर्जक व्यक्तित्व में वे सारी विशिष्टताएँ एक साथ दीख पड़ीं। उन्हें परमात्मा के सच्चे प्रतिनिधि एवं प्रवक्ता के रूप में 'प्राणनाथ' और युगान्तरकारी 'निष्कलंक बुधावतार' तक के दर्शन हो गये। इतने सारे दायित्वों और भूमिकाओं का निर्वाह जिस कौशल से और बिना किसी चमत्कार के महामति के संकल्प और संघर्ष द्वारा सम्पन्न होता चला गया—वह भारतीय धर्म साधना के इतिहास एवं परिदृश्य में सचमुच अद्भुत और अनूठा था। इसीलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि उनका सहज किन्तु प्रभावी व्यक्तित्व उनके प्रशंसकों, पाठकों, अनुगतों, समर्थकों और सबसे बढ़कर उनके अनुयायियों को लोकोत्तर प्रतीत होता है।
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    Specifications
    Book Details
    Publication Year
    • 2023
    Contributors
    Author Info
    • हिन्दी के सुपरिचित विद्वान रणजीत साहा (जन्म 21 जुलाई, 1946), हिन्दी में एम.ए. (प्रथम श्रेणी), विश्वभारती, शान्तिनिकेतन से पीएच.डी. तथा तुलनात्मक साहित्य एवं ललित कला अधिकाय में भी उपाधियाँ प्राप्त हैं। भागलपुर, शान्तिनिकेतन एवं दिल्ली विश्वविद्यालयों में अध्ययन तथा शोध-सम्बन्धी परियोजनाओं से जुड़े रहने के उपरान्त आप दो दशकों तक साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली के उपसचिव पद पर कार्यरत रहे। शोध एवं अनुवाद के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य कर चुके रणजीत साहा की लगभग तीन दर्जन पुस्तकें एवं कई शोधपूर्ण लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं ।आपके द्वारा लिखित कृतियों में 'युगसन्धि के प्रतिमान', 'सहज सिद्ध : साधना एवं सर्जना', 'अमृत राय', ‘किरंतन', 'सिद्ध साहित्य : साधन विमर्श' तथा ‘चर्यागीति विमर्श' (समालोचना), 'रवीन्द्र मनीषा' एवं 'रवीन्द्रनाथ की कला सृष्टि' के अलावा 'गीतांजलि' का अनुवाद भी सम्मिलित है। आपने बाङ्ला के कई शीर्षस्थ लेखकों के अलावा अंग्रेज़ी एवं गुजराती से भी कई कृतियों का अनुवाद किया है। समकालीन रोमानियाई कविता का विशिष्ट संकलन 'सच लेता है आकार' (साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित) कविता के पाठकों द्वारा काफ़ी सराहा गया है। वर्ष 2007 में रोमान कल्चरल इंस्टीट्यूट, रोमानिया से विज़िटिंग फेलोशिप प्राप्त रणजीत साहा को रोमानिया दूतावास ने साहित्य के क्षेत्र में 'श्रेष्ठ प्रोत्साहक' (बेस्ट प्रोमोटर) का सम्मान प्रदान किया है।भारतीय भाषा केन्द्र, जवाहरलाल नेहरू वि.वि. से सेवामुक्त रणजीत साहा की मौलिक लेखन के अलावा, अनुवाद के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान है। ललित कला, विशेषकर कला समीक्षा में आपकी गहरी रुचि है। रूस, अमरीका, इंग्लैंड, जापान, बुल्गारिया, मॉरीशस एवं नेपाल की विभिन्न साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके रणजीत साहा भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता के सेतुबन्ध पुरस्कार, अन्तरराष्ट्रीय इंडो- रसियन लिटरेरी सम्मान, दिनकर रत्न सम्मान, उ.प्र. हिन्दी-उर्दू कमिटी अवार्ड, हिन्दी साहित्य सेवी सम्मान (म.गां. अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.) तथा काकासाहेब कालेलकर अलंकरण से सम्मानित और कई साहित्यिक संस्थाओं से समादृत हैं ।
    Additional Features
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    • 18 - 80 Years
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