Main Kaun Hoon?

Main Kaun Hoon?  (Hindi, Paperback, Vivekananda Swami)

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    Highlights
    • Language: Hindi
    • Binding: Paperback
    • Publisher: Prabhat Prakashan
    • Genre: Fiction
    • ISBN: 9789355626882
    • Edition: 1st, 2024
    • Pages: 168
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  • Description
    स्वामी विवेकानंद भारत में उस समय अवतार लिया, जब यहाँ हिंदू धर्म के अस्तित्व पर संकट के बादल मँडरा रहे थे। पंडित-पुरोहितों ने हिंदू धर्म को घोर आडंबरवादी और अंधविश्वासी बना दिया था ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म को पहचान दी । इसके पहले हिंदू धर्म विभिन्‍न छोटे-छोटे संप्रदायों में बँटा हुआ था। तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो (अमरीका) की विश्व धर्म-संसद्‌ में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और इसे सार्वभौमिक पहचान दिलवाई। उनतालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आनेवाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। प्रस्तुत पुस्तक ‘मैं कौन हूँ?’ में स्वामीजी ने सरल शब्दों में एक आम आदमी के उन सवालों के उत्तर दिए हैं, उन जिज्ञासाओं को शांत करने का प्रयास किया है, जिनमें वह अकसर उलझकर रह जाता है कि आखिर वह है कौन ? ये आत्मा-परमात्मा कौन हैं ? स्वयं को कैसे जाना जा सकता है ? हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है ? धर्म का जीवन में क्या महत्त्व है ? जीवन की सार्थकता क्‍या है? ऐसे ही करनेवाली विख्यात आध्यात्मिक विभूति स्वामी विवेकानंद की एक प्रेरक और ज्ञानवर्धक पुस्तक |
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    Specifications
    Book Details
    Imprint
    • Prabhat Prakashan
    Publication Year
    • 2024 April
    Number of Pages
    • 168
    Contributors
    Author Info
    • स्वामी विवेकानंद स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ था । इनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था। इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। इनकी माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवीजी धार्मिक विचारों की महिला थीं। बचपन से ही नरेंद्र अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के थे पर नटखट थे। परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से बालक नरेंद्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे पड़ गए। नरेंद्र ने श्रीरामकृष्णदेव को अपना गुरु मान लिया था; उन्होंने ही नरेंद्र को संन्यास की दीक्षा दी। उसके बाद गुरुदेव ने अपनी संपूर्ण शक्तियाँ अपने नवसंन्यासी शिष्य स्वामी विवेकानंद को सौंप दीं, ताकि वह विश्व-कल्याण कर भारत का नाम गौरवान्वित कर सके। भारतवर्ष के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रदूत बन उन्होंने सनातन धर्म की पताका विश्वभर में फहराई। 4 जुलाई, 1902 को यह महान्‌ तपस्वी अपनी इहलीला समाप्त कर परमात्मा में विलीन हो गया।
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