Maine Tumhara Kya Bigada Hai

Maine Tumhara Kya Bigada Hai (Paperback, Vijayrajmallika, Translated from Malayalam By Suma S.)

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Maine Tumhara Kya Bigada Hai  (Paperback, Vijayrajmallika, Translated from Malayalam By Suma S.)

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    Highlights
    • Binding: Paperback
    • Publisher: Vani Prakashan
    • Genre: Poetry Collection
    • ISBN: 9789357755078
    • Edition: 1st, 2024
    • Pages: 100
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  • Description
    विजयराजमल्लिका मलयालम की एक ट्रांसजेंडर कवयित्री हैं। ज़ाहिर सी बात है, जब वे एक ट्रांसजेंडर हैं तो उनकी कविता की दुनिया में ऐसा बहुत कुछ जो अनदेखा, अनजाना और अनछुआ भी। इसलिए उनकी कविताएँ मलयालम साहित्य को समृद्ध तो करती ही हैं, भारतीय साहित्य को भी समृद्ध करती हैं। मल्लिका जी की कविताएँ हमारे ही समय, समाज और इस पृथ्वी की कविताएँ हैं लेकिन अपने कंटेंट और ट्रीटमेंट के स्तर पर जिस तरह वे स्त्री-पुरुष के लोक में अपने विषमलिंगी लोक को रचती हैं, वह दृष्टि, संवेदना और प्रतिरोध के निमित्त भीतर कहीं ठहर-सा जाता है ताकि कहन में गहन को सम्भृत हो जान सकें । ट्रांसजेंडर उसी गर्भ से पैदा होते हैं जिससे अन्य, लेकिन पितृसत्तात्मक समाज में वही माँ जब एक दिन शर्म, भय के कारण फ़र्क़ और घृणा करने लगे और बच्चा इस सवाल का उत्तर जानना चाहे कि 'बेटा नहीं, मैं बेटी हूँ तब भी क्या तुम मुझे भिन्नलिंगी बुलाओगी?' जब कि 'तुम भी तो माँ हो!'; तब उसकी वेदना की थाह लगाना मुश्किल ! बावजूद इसके कवयित्री-जब किसी को पता नहीं था कि वह नर या मादा नहीं कुछ और हैं, और एक दिन घर से विलग होना पड़ा-अपने बचपन के उन सुनहरे दिनों को याद करती हैं जब माँ 'लाल' सम्बोधित कर खाने को बुलाती थी; उस बुलावे को कभी नहीं बिसरतीं क्योंकि 'पिघलती मिठास की यादें सदा बसी रहती हैं।' तभी तो वे अपने जैसे उपेक्षितों के लिए उमड़ पड़ती हैं कि 'नींद की आहट में/मेरे अन्दर एक मातृहृदय कराहता है' और लिखती हैं एक लोरी - 'लड़का नहीं तू ना लड़की ...तुझे सीने से लगाकर/तेरे माथे को चूमूँ मैं ... अभिशाप नहीं हो, पाप नहीं हो तुम, प्यारे...रा रा री री रू रा रा री रू ।' वे लोरी लिखते इस तरह गर्व से भर जाती हैं कि मान्यताओं के मुँह पर तमाचा मारते कहती हैं- 'मैं अपने बच्चों को बृहन्नला या/शिखण्डिनी/नाम दूँगी/ताकि उनके द्वारा/भाषा में हुए घातक घाव भर जायें।' ऐसा नहीं है कि ट्रांसजेंडर होना निर्बल होना होता है। वे अपनी लड़ाई लड़ना और जीतना जानते हैं, इसी समाज में जहाँ लोग तीसरे लिंग की जीवन-छतरी में विविधताओं को नहीं देखते, संख्याओं में लिंग को देखते हैं यानी अंकों से आँकते हैं मनुष्यों को और नज़रों से ही नहीं, भाषा के ज़रिये भी चोट पहुँचाते हैं- 'सीने में चाकू मारने से भी ज़्यादा पीड़ा होती है/बातों से हृदय पर आघात करने से ।' जब कि इन्हीं लोगों में से कुछ उन्हें अपनी वासना का शिकार बनाने से नहीं चूकते। रेलवे कूपे में हाथ फैलाने वाले बस हिंजड़ा हैं, जिन्हें कई परिचित पहचानने से इनकार कर देते हैं। बस में महिला सीट पर बैठने की ज़िद करें तो बैठ नहीं सकते, भले चिल्लाते रहें- 'मैं औरत हूँ । कुछ तो ऐसे जो उनके लाड़, उनकी चुप्पी को एकतरफ़ा समझ लेते हैं और न मानने पर चेहरे पर तेज़ाब भी फेंक देते हैं। कई ऐसे जो 'अस्तित्व का दिशाबोध/गले में ठोंकते हैं मछली के सिर के काँटे की तरह ।' आख़िर यह कैसा न्याय है? कवयित्री पूछती हैं- 'तेरे अनुयायी तेरी वकालत करेंगे/मेरी वकालत करेगी यह प्रकृति ...क्या मनुष्य-जन्म सिर्फ़ स्त्री-पुरुष के रूप में हुआ था? हे करुणानिधान, बता/कि मौन से बड़ा कोई पाप है?' चूँकि ट्रांसजेंडर भी मनुष्य हैं, और मनुष्य हैं तो प्रेमविहीन कैसे हो सकते हैं! इस संग्रह में प्रेम पर भी छोह-विछोह के रंगों को समेटे कई कविताएँ हैं जो उनके एक ऐसे अज्ञात प्रदेश में ले जाती हैं जो अज्ञात तो होता है लेकिन अबूझ नहीं। इसकी बानगी इन पंक्तियों में देखा जा सकता है- 'निःशब्द प्रणय/अक्सर / है होता सीने में आग-सा/वह/ जल रहा होता है फैल रहा होता है सुलग रहा होता है धुआँ-सा/लेकिन किसी को पता नहीं होता।'; 'अनंकुरित थनों वाले उस सीने की घुड़दौड़ देख हर बार मन में जगता है फूल बनने का एहसास'; 'उसने मुझे पसन्द किया/और मैंने उसे ... लेकिन यह रिश्ता नहीं चलेगा/कि आख़िर बिना योनिवाली महिला की शादी कैसी!' कहने की आवश्यकता नहीं कि विजयराजमल्लिका का यह कविता-संग्रह हिन्दी पाठकों के लिए एक उपलब्धि तो है ही, अविस्मरणीय भी होगा।
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    Specifications
    Book Details
    Publication Year
    • 2024
    Contributors
    Author Info
    • विजयराजमल्लिका - मलयालम भाषा की पहली ट्रांसजेंडर कवयित्री। 1985 को केरल के त्रिचुर ज़िला में जन्म । कालीकट विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। तत्पश्चात् राजगिरि कॉलेज से एम.एस.डब्ल्यू. में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल की। दैवात्तिन्टे मकल (देवता की बेटी) पहला कविता-संकलन 2018 में प्रकाशित । युवाकला साहिती से पुरस्कृत इस कृति की कविताएँ मद्रास विश्वविद्यालय के मलयालम साहित्य के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में शामिल की गयी हैं। नर नदी, स्त्री बन जाने वाली की कविताएँ, लिलित की मृत्यु नहीं होती, मैं कोई दूसरी लड़की नहीं हूँ आदि अन्य कविता-संकलन हैं। उनकी आत्मकथा है मल्लिका वसन्तम जो काफ़ी चर्चित हुई है। साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें केरल सरकार की तरफ़ से अवार्ड प्राप्त हो चुका है। 'अरली सम्मान', 'मत्ताई मान्जूरान साहित्य रत्नम पुरस्कार' आदि पुरस्कारों से भी वे नवाज़ी गयी हैं। सम्प्रति केरल साहित्य अकादमी की सामान्य परिषद् सदस्य और एस.सी.आर.टी. की संचालन समिति सदस्य हैं। भारत सरकार से मान्यता प्राप्त म्यूज़िक एंड आर्ट्स यूनिवर्सिटी द्वारा उन्हें आनरेरी डॉक्टरेट की उपाधि से भी सम्मानित किया गया है। ܀܀܀ सुमा एस. - जन्म : 1 मार्च 1968 शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी., बी.एड., अनुवाद और पत्रकारिता में डिप्लोमा । प्राचार्या, एम.एम.एस. आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज, मलाइनकील, तिरुवनन्तपुरम, केरल । प्रकाशित कृतियाँ : चेतना-प्रवाह के प्रवर्तक प्रभाकर माचवे और विलासिनी, नया साहित्य और नये प्रश्न, साहित्य-सृजन तथा मूल्यांकन, सृजनात्मक लेखन और संचार-क्षमता, पारिस्थितिक पाठ और हिन्दी साहित्य, समाज सुधारक कबीर, वाद से विमर्श तक, प्राणवायु, प्रयोगधर्मी अज्ञेय और चेतना-प्रवाह (आलोचना); सन्दिग्ध हैं साँसें (कविता-संकलन); फ़िल्म-सफ़र : कल और आज (सिनेमा) आदि । विभिन्न शोध पत्रिकाओं में शोध-पत्र प्रकाशित । विभिन्न शैक्षिक संगठनों से सम्बद्धता । लेखन के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित । सम्पर्क : 3बी, एलायंस टावर्स, डीपीआई जंक्शन, त्रिवेन्द्रम ।
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