इस पुस्तक का मूलाधार है यादें- सिर्फ और सिर्फ यादें। वे यादें, जो जीवन के हर मोड़ पर एक जरूरी सवाल की तरह उभरती हैं। वे यादें, जिनमें दर्ज है वह अतीत, जो उस रास्ते का गवाह है, जहाँ मैं पैदल चला नंगे पाँव बगैर किसी पग-बाधा के। इन्हीं रास्तों पर चलकर उन शिखर-पुरुषों से मिला, जो कविता, कहानी, उपन्यास, गजल, नवगीत, फिल्म, पत्रकारिता, रंगमंच, कवि सम्मेलन, संपादन, राजनीति और समाज के नायक थे और रहेंगे।
वे डॉ. धर्मवीर भारती हैं, वीरेंद्र मिश्र हैं, वनमाला हैं, मोतीलाल वोरा हैं, नारायण दत्त हैं, कमलेश्वर हैं, सागर सरहदी हैं, गणेश मंत्री हैं, सुदीप हैं, चित्रा मुद्गल हैं, राजेंद्र शर्मा हैं, निदा फाजली हैं, नरेंद्र कोहली हैं, पद्मा सचदेव हैं, ओम प्रभाकर हैं, अनिल धारकर हैं, बंसी कौल हैं और हैं प्रदीप चौबे, जहीर कुरैशी, आलोक तोमर, कैलाश सेंगर, दिनेश तिवारी जैसे मेरे अपने, जिनके संग-साथ मैं कल रो सका और आज भी रो रहा हूँ।
यादों का यह सघन वन हमें उस सकारात्मक ऊर्जा के पुंज के पास भी खड़ा कर देता है, जो ताउम्र हमें उनके होने और पास रहने का अहसास दिलाता है। यह मतिभ्रम भी हो सकता है।
- इसी पुस्तक से