सच को सच कहती हुई, सार्वभौमिक सत्य पर आधारित यह पुस्तक वर्तमान परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए सुधारात्मक दृष्टि से लिखी गई है। जिसमें आधुनिक दौर में मानवीय संवेदनाओं, व्यवहार, आचरण, समाज, देश और मानव जाति के प्रति कर्तव्य और नजरिये आदि को व्यक्त करने के साथ-साथ सार्वभौमिक सत्य को सबके सामने लाना इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है। इस पुस्तक में गागर में सागर भरने की कोशिश की गई है, जो वर्तमान स्थिति के अनुकूल है और वर्तमान की सच्चाई है।