Reit Ki Ikk Mutthi

Reit Ki Ikk Mutthi (Paperback, Gurdayal Singh)

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    Highlights
    • Binding: Paperback
    • Publisher: Bharatiya Jnanpith-Vani Prakashan
    • Genre: Novel
    • ISBN: 9789355186966
    • Edition: 5th, 2015
    • Pages: 112
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    VaniPrakashan
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  • Description
    रेत की इक्क मुट्ठी - "पैसे से ही संसार है।... यह संसार की माया है। उस नीली छतरीवाले की माया! बहुत सीधी-सी बात है कि भगवान की माया, भगवान के हम। तो माया और हमारे बीच क्या भेद रहा? समझी मेरी बात! तू अभी बच्ची है। जीवन की गहरी बातें अभी तू नहीं समझ पायेगी। हाँ, हम सब जानते हैं। हमने ज़माना देखा है।" इस उपन्यास के नायक अमरसिंह के ये शब्द सुनने-पढ़ने में बहुत साधारण लग सकते हैं, लेकिन 'ज़माना देख चुका' यह आदमी अपनी इसी मानसिकता के कारण जीवन की अमूल्य उपलब्धियों को नकारते हुए ऐसे बीहड़ में सब कुछ खो देता है जो केवल मनुष्य को प्राप्त है। ज़िन्दगी उसकी मुट्ठी से रेत की तरह गिरती चली जाती है।... दरअसल इस उपन्यास का नायक अपनी इस मानसिकता का दण्ड भोगता है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित पंजाबी के वरिष्ठ कथाकार गुरदयाल सिंह के इस लघु उपन्यास में इसी भयावह मानसिकता के मार्मिक शब्द-चित्र हैं, जो हमारे समय और सामाजिक जीवन का क्रूर और त्रासद यथार्थ है।
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    Specifications
    Book Details
    Publication Year
    • 2015
    Contributors
    Author Info
    • गुरदयाल सिंह - (पंजाबी के वरिष्ठ साहित्यकार) - जन्म: 10 जनवरी, 1933 को पंजाब के जैतो क़स्बे में एक साधारण दस्तकार परिवार में। असाधारण परिस्थितियों से जूझते हुए शैक्षणिक कार्य पूरा किया। 1971 से 1987 तक बरजिन्द्रा कॉलेज, फ़रीदकोट में प्राध्यापक। और फिर पंजाबी यूनिवर्सिटी क्षेत्रीय केन्द्र बठिण्डा में प्रोफ़ेसर पद पर अध्यापन। पहली कहानी 1957 में प्रो. मोहनसिंह द्वारा सम्पादित 'पंज दरिया' में प्रकाशित। अब तक 9 उपन्यास, 10 कहानी संग्रह, 1 नाटक, 1 एकांकी संग्रह, बच्चों के लिए 10 किताबें, विविध गद्य की 2 पुस्तकें तथा दर्जनों लेखादि प्रकाशित। आधा दर्जन पुस्तकों का सम्पादन कार्य भी। उपन्यासों में 'मढ़ी का दीवा' (1966), 'घर और रास्ता' (1968), 'अध-चाँदनी रात' (1988), 'पाँचवाँ पहर' (1988), 'सब देस पराया' (1995), 'साँझ-सवेर' (1999), 'रेत की इक्क मुट्ठी' (2000), हिन्दी अनुवाद के रूप में प्रकाशित कुछ कृतियाँ देश एवं विदेश की कई भाषाओं में अनूदित। भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार 1999 के अतिरिक्त पद्मश्री 1998; साहित्य आकादेमी पुरस्कार 1975; सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार 1986, पंजाब साहित्य अकादेमी पुरस्कार 1989; शिरोमणि साहित्यकार पुरस्कार 1992 आदि से सम्मानित। साहित्यकार के तौर पर कनाडा, ब्रिटेन तथा पूर्व सोवियत संघ का भ्रमण।
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