संभवामि युगे युगे -
आज के युग में विज्ञान भारतीय जनजीवन का एक अभिन्न अंग बनता जा रहा है। किन्तु विज्ञान का नाम लेते ही किसी जटिल एवं दुर्बोध विषय की परिकल्पना कर साधारण मनुष्य उससे दूर जाने का प्रयास करता है। वैज्ञानिक तथ्यों की कलात्मक माध्यम द्वारा प्रसार की प्रगति के प्रति उत्सुकता बढ़ाने में इस विधा का विशेष महत्व है। विशेष रूप से युवा पीढ़ी में वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रति जिज्ञासा, समझ-बूझ और जागरूकता बढ़ाने के लिए यह विधा अत्यन्त उपयोगी है। विज्ञान के विषय में मौलिक और रोचक जानकारी उपलब्ध न होना इसका एक कारण हो सकता है। दूसरी ओर यह भी देखने में आता है कि बौद्धिक वर्ग में विज्ञान के प्रति जिज्ञासा तो बढ़ती जा रही है लेकिन वे इसकी जानकारी पाश्चात्य विज्ञान साहित्य से ही प्राप्त करते हैं। इस कारण हिन्दी पाठकों को विज्ञान के अनुभव और जानकारी एक अन्य भाषा से प्रेषित किये जाने लगे। अन्य भाषाएँ भारत की साहित्यिक आत्मा से जुड़ाव नहीं महसूस कर पातीं। इनके अनुवाद कितने ही सरस और सहज क्यों न हुआ हो, अपने देश के लोगों को यह अपनी भाषा की तरह एक सूत्र में नहीं बाँध पाते। इसी सन्दर्भ में यह पुस्तक भारतीय भाषा—मराठी से अनूदित हुई है जो अपने हिन्दी पाठकों की जिज्ञासा और ज्ञान की ललक को पूर्ण करती है।
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Specifications
Book Details
Publication Year
1991
Contributors
Author Info
लक्ष्मण लोंढे -
मराठी के अग्रणी विज्ञान-गल्प लेखकों में एक जाना-माना नाम है। दो बार मराठी विज्ञान कथा प्रतियोगिताओं में आपने पारितोषिक जीते हैं। आपके '22 जुलाई 1995' शीर्षक विज्ञान कहानियों के संग्रह को महाराष्ट्र सरकार का सर्वोत्तम विज्ञान साहित्य का प्रथम पुरस्कार 1981 में मिला। आपकी विज्ञानकथाओं का अंग्रेज़ी, हिन्दी, गुजराती, बांग्ला, कन्नड़, उर्दू आदि कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। ख़ूब लिखते हैं। दो विज्ञान उपन्यास, दो विज्ञान कहानी-संग्रह, अनेक सामाजिक कहानियाँ, रहस्यकथा आदि प्रचुर साहित्य आपके खाते में जमा हैं। विज्ञान के स्नातक होने के बाद आपने क़ानून में स्नात्तकोत्तर उपाधि प्राप्त की। इस समय आप एक वित्तीय संस्थान में व्यवस्थापक हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए भी आप नियमित लेखन करते हैं।
लेखक - श्री चिंतामणि देशमुख -
भौतिकी में एम.एससी. करने के बाद विगत 20 वर्षों से बम्बई के अभियान्त्रिकी महाविद्यालय में अध्यापन कार्य करते हैं। आपने विज्ञान, वैज्ञानिक एवं विज्ञाननिष्ठ समाज पर काफ़ी लिखा है। लोकविज्ञान संगठन, पर्यावरण सुरक्षा अभियान में आपका योगदान रहा है।
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