मनुष्य प्रकृति की अद्भुत, सुंदरतम संरचना है, और उससे भी अधिक सुंदर हैं उसके भाव, जो उसे प्रकृति और ईश्वर से जोड़ते हैं। ये भाव कभी प्रकृति के रहस्यों को समझने की कोशिश करते हैं, और कभी इस रिश्ते के ताने-बाने में उलझ जाते हैं। मां की व्यथा, चांद-तारों से मन की बात, यह सब कविताओं में बखूबी दर्शाने की कोशिश की गई है।
इसके साथ ही, हम भारतवासी अपने स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस से किस प्रकार जुड़े हुए हैं, आजादी की हवा में खुलकर सांस लेते हुए उसे किस प्रकार महसूस करते हैं, इन भावनाओं को भी कविताओं में व्यक्त किया गया है। इस समय अमृत महोत्सव चल रहा है, जो हमारे आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने का पर्व है, इसे ध्यान में रखते हुए भी कुछ कविताएं संकलित की गई हैं।
हमारा भारत देश हिंदुस्तान कहलाता है, और यहां की राष्ट्रभाषा हिंदी होनी चाहिए। हिंदी का व्यापक विस्तार कैसे हो सकता है, इस पर भी मैंने अपने भावों को कविताओं में पिरोने की कोशिश की है। 'हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्तान हमारा' की भावना को प्रत्येक भारतवासी के मन में स्थापित करने के उद्देश्य से कुछ कविताएं लिखी गई हैं, जो हर हिंदुस्तानी के मन में उठने वाली उमंग और भावनाओं को व्यक्त करती हैं।
हम सनातनी अपने धर्म ग्रंथों में यह पढ़ते हैं कि सबसे बड़ा आश्रम गृहस्थ आश्रम है। गृहस्थ व्यवस्था में हम अपने परिवार से भावनात्मक रूप से किस प्रकार जुड़े होते हैं, इसका भी चित्रण करने की कोशिश की गई है। इस प्रकार, आप कह सकते हैं कि मनुष्य के जीवन के कई पहलुओं को छूते हुए, उनके भा